Wednesday, 27 July 2011

खेत में सितारा

पीयूष गुप्ता

पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट का वह पहला छात्र, जिसे उस समय के लीडिंग फिल्म प्रोड्यूसर ने अपनी फिल्म के लिए हीरो चुना। कई फिल्मों में हीरो रहकर आज खेती और बागवानी कर रहा है। उस समय इस हीरो की सफलता से सिर्फ उसके करियर का नहीं, बल्कि पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट का भविष्य भी जुड़ा था। समझौता न करने के स्वभाव के कारण सब कुछ छोड़कर अकबर की पहली राजधानी फतेहपुर सीकरी में वह अपने पैतृक घर लौट आया। अब ये फिल्मी हीरो क्षेत्र की जनता की सेवा का इरादा रखता है, नाम है उसका प्रेमेंद्र उर्फ त्रिलोकी नाथ पाराशर...

अपने समय की हिट हिंदी फिल्म ‘होली आई रे’ देने वाले प्रेमेंद्र मुबंई की चकाचौंध से ऊबकर पत्नी और बच्चों समेत मुंबई छोड़कर अपने घर आगरा लौट आया। फिर अपनी माटी की खुशबू में बंधकर रह गया। पत्नी और बच्चों को फतेहपुर सीकरी जैसा कस्बा कहां रास आता? पत्नी अपने चार बेटे-बेटी में से दो बड़े बच्चों को लेकर अपनी मां के पास लंदन चली गई। खेती और बागवानी की देखभाल को अपना शौक बना चुके प्रेमेंद्र अब दो छोटे भाइयों और उनके परिवार के अलावा होटल व्यवसायी मित्र मोहन अग्रवाल के साथ समय गुजारते हैं। वे खेती में नए प्रयोग कर क्षेत्रीय जनता को नई सीख के साथ-साथ रोजगार के मौके मुहैया कराना चाहते हंै। उनहत्तर वर्र्षीय यह हीरो ज्यादा शारीरिक सक्रियता भले न रख पाए, परंतु फतेहपुर सीकरी में होने वाले हर सामाजिक, राजनैतिक कार्यक्रमों में शिरकत करने और जो कुछ उनके द्वारा हो सकता है, करने का माद्दा रखते हंै। बॉलीवुड के खट्टे-मीठे अनुभव लिए प्रेमेंद्र कहते हैं-इंडस्ट्री के लोग शौहरत और दौलत के पीछे दौड़ते हैं। बाद में कोई किसी को नहीं पूछता। ये विचार जिंदगी की कड़वी हकीकत बयां करते हैं। ...और शायद एकाकीपन की कसक भी।

पीएफआई के तीसरे खेप का स्टूडेंट

त्रिलोकी नाथ पाराशर से प्रेमेंद्र बने इस हीरो ने पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट के तीसरे बैच में एक्टिंग के
गुर सीखे थे। पहले बैच में दस कलाकारों की खेप, जिसमें सुभाष घई और असरानी आदि और दूसरे बैच में रेहाना सुल्ताना, जलाल आगा, राकेश पांडे (भोजपुरी फिल्मों के नायक) अपना कोर्स पूरा कर चुके थे, धीरज कुमार (क्रिएटिव आई) अपना कोर्स बीच में छोड़ चुके थे। तीसरे कोर्स में प्रेमेंद्र के साथ शत्रुघ्न सिन्हा थे, लेकिन किसी को हीरो/हीरोइन का रोल नहीं मिला था। लिहाजा, तीसरे बैच के होने के बाद भी लीडिंग रोल झटकने वाले इंस्टीट्यूट के ये पहले छात्र रहे। कोर्स के दौरान ही बैजू बावरा, गूंज उठी शहनाई, हरियाली और रास्ता, हिमालय की गोद में जैसी हिट फिल्में देने वाले विजय भट्ट को त्रिलोकी में मनोज कुमार और धर्मेंद्र का मिला-जुला रूप देखने को मिला। जब विजय भट्ट फिल्म इंस्टीट्यूट आए और उन्होंने प्रेमेंद्र को देखा, तो पहली नजर में अपनी 63वीं फिल्म ‘होली आई रे’ के लिए ताजा चेहरा मिल गया। उससे पहले वे मनोज कुमार को लेकर दो फिल्म बना चुके थे।

बॉलीवुड पहुंचने की कहानी

प्रेमेंद्र की बॉलीवुड पहुंचने की दास्तान भी किसी कहानी से कम नहीं। आगरा कॉलेज में पढ़ने के दौरान एक दिन लेट होने से क्लास मिस होने पर एक दोस्त कैंटीन ले गया, वहां उसने फिल्म इंस्टीट्यूट का विज्ञापन दिखाया और छह फीट डेढ़ इंच लंबे, गोरे और सुंदर प्रेमेंद्र को हीरो बनने का विश्वास जताया। आॅडिशन में भी लेट पहुंचे प्रेमेंद्र की किस्मत ने साथ दिया। आॅडिशन खत्म होते होते इनका भी आॅडिशन हो गया। कोर्स में एडमिशन के बाद जब फिल्म के लिए सलेक्शन हो गया और विजय भट्ट के बुलावे पर मुंबई पहुंचे, तो ज्यादातर हीरो बनने वालों की तरह मजबूरी में पहली रात सड़क पर गुजारनी चाही, लेकिन पुलिस ने पार्क में रात नहीं गुजारने दी। फिर स्टेशन जाकर रात गुजारी। अगले दिन विजय भट्ट से मुलाकात होने पर सब ठीक हो गया।

प्रेमेंद्र बॉलीवुड के अकेले नए हीरो (डेव्यू) रहे, जिनकी दो फिल्में एकसाथ एक ही दिन रिलीज हुईं। ये फिल्में थीं ‘होली आई रे’ और ‘दीदार’। सन् 1970 में दीवाली से एक सप्ताह पहले ये फिल्म रिलीज हुईं। ‘होली आई रे’ में फिल्म में प्रेमेंद्र के साथ माला सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा, बलराज साहनी और कल्याणजी आनंदजी के संगीत से सजी यह विजय भट्ट की फिल्म थी, जो उस समय के सबसे बड़े बैनर थे। ‘दीदार’ में अंजना प्रेमेंद्र के अपोजिट थीं। ऊषा खन्ना के संगीत की स्वर लहरियों से सजी यह जुगल किशोर निर्देशित थी। ‘साज और सनम’ में प्रेमेंद्र के अपोजिट रेखा थीं। ‘दुनिया क्या जाने’ फिल्म शंकर जयकिशन के संगीत से सजी श्रीधर निर्देशित थी। श्रीधर इससे पहले ‘नजराना’, ‘दिल एक मंदिर’ जैसी तमाम नामी फिल्में बना चुके थे। प्रेमेंद्र की ‘जोगी’ सबसे आखिर में आने वाली फिल्म रही।

स्टार भी बन गया जोगी

जोगी के बाद यह स्टार भी जोगी बन गया। यहीं से इसका बॉलीवुड से सन्यास हो गया। फिल्म अपेक्षित सफलता नहीं पा पाई। हीरो की जगह सह कलाकार और विलेन बनने के कई आॅफर मिले। उनकी जिद थी कि लीड रोल ही चाहिए। बॉलीवुड में सिर्फ सुंदरता और व्यक्तित्व के कोई मायने नहीं। वहां व्यावसायिक सफलता जरुरी है। प्रेमेंद्र को मलाल है कि उनके नाम से रिकॉर्ड हुआ गाना दूसरे को मिल जाने से उनका हार्डलक शुरु हो गया। गाना था ‘मेरी तमन्नाओं की तकदीर तुम संवार दो, प्यासी है जिंदगी और मुझे प्यार दो। ’


प्रेमेंद्र का परिवार एक नजर में...

प्रेमेंद्र के परिवार में पत्नी के अलावा दो बेटे और दो बेटी हंै। चारों बच्चों की शादी हो चुकी है। पत्नी मंदाकिनी फिल्म इंडस्ट्री में नाम कमाने की चाहत के चलते मिलीं। प्रेमेंद्र को पाने के बाद जैसे मंजिल मिल गई। फिल्म का शौक कब कहां चला गया, पता ही नहीं चला। सबसे बड़ी बेटी, फिर बेटा, फिर दूसरा बेटा और आखिर में एक और बेटी के बाद फुल स्टाप। सबसे बड़ी बेटी ने लंदन में डिपार्टर्मेंटल स्टोर के कारोबारी से शादी की। बड़े बेटे ने थोड़ी-बहुत कला की विरासत संभाली। बड़ा बेटे ऋषि पाराशर ने एक गुजराती फिल्म में अभिनय किया। ईटीवी उर्दू के सीरियल हमारी जीनत और दूरदर्शन के लिए नवाब सिराजुद्दौला में काम किया। फिल्मों में और छोटे-मोटे रोल वाली भूमिकाएं पाने के बाद उसे भी फिल्मी सफर रास नहीं आया और वह भी लंदन में सैटल हो गया। दूसरा बेटा रिटेल मार्केटिंग में बड़ा अधिकारी है। सबसे छोटी बेटी ने लगेज इंडस्ट्री के बड़े अधिकारी से शादी कर ली। प्रेमेंद्र के 2001 में फतेहपुर सीकरी आ जाने के बाद सास ने अपनी बेटी को समझाया कि अगर ढंग से जीना है, तो लंदन में बसो। दोनों बड़े बच्चों के साथ पत्नी लंदन जा बसी। अब वहां धार्मिक आयोजन (भजन और प्रवचन) का ग्रुप चलाकर अपनी भौतिक और आध्यात्मिक संतुष्टि करती हैं। बड़ा बेटा भी उनके साथ है।